प्रदूषण, पर्यावरण में दूषक पदार्थों के प्रवेश
के कारण प्राकृतिक संतुलन में पैदा होने वाले दोष को कहते हैं। प्रदूषक पर्यावरण को और जीव-जन्तुओं को
नुकसान पहुंचाते हैं। प्रदूषण का अर्थ है - 'हवा, पानी, मिट्टी आदि का अवांछित द्रव्यों से दूषित होना', जिसका सजीवों पर प्रत्यक्ष रूप
से विपरीत प्रभाव पड़ता है तथा पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान
द्वारा अन्य अप्रत्यक्ष प्रभाव पड़ते हैं। वर्तमान समय में पर्यावरणीय अवनयन का यह एक
प्रमुख कारण है।
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पृथ्वी का वातावरण स्तरीय है। पृथ्वी के
नजदीक लगभग 50 km ऊँचाई पर स्ट्रेटोस्फीयर है जिसमें ओजोन स्तर
होता है। यह स्तर सूर्यप्रकाश की पराबैंगनी (UV) किरणों को शोषित
कर उसे पृथ्वी तक पहुंचने से रोकता है। आज ओजोन स्तर का तेजी से विघटन हो रहा है, वातावरण में
स्थित क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC)
गैस के कारण ओजोन स्तर का विघटन हो रहा है।
यह सर्वप्रथम 1980 के वर्ष में नोट
किया गया की ओजोन स्तर का विघटन संपूर्ण पृथ्वी के चारों ओर हो रहा है। दक्षिण
ध्रुव विस्तारों में ओजोन स्तर का विघटन 40%-50% हुआ है। इस
विशाल घटना को ओजोन छिद्र (ओजोन होल) कहतें है। मानव आवास वाले विस्तारों में भी
ओजोन छिद्रों के फैलने की संभावना हो सकती है। परंतु यह इस बात पर आधार रखता है कि
गैसों की जलवायुकीय परिस्थिति और वातावरण में तैरती अशुद्धियों के अस्तित्व पर है।
ओजोन स्तर के घटने के कारण ध्रुवीय प्रदेशों पर जमा बर्फ पिघलने लगी है तथा मानव को अनेक प्रकार के चर्म रोगों का सामना करना पड़ रहा है। ये रेफ्रिजरेटर और एयरकंडिशनर में से उपयोग में होने वाले फ़्रियोन और क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC) गैस के कारण उत्पन्न हो रही समस्या है। आज हमारा वातावरण दूषित हो गया है। वाहनों तथा फैक्ट्रियों से निकलने वाले गैसों के कारण हवा (वायु) प्रदूषित होती है। मीलों से निकलने वाले कचरे को नदियों में छोड़ा जाता है, जिससे जल प्रदूषण होता है। लोंगों द्वारा कचरा फेंके जाने से भूमि (जमीन) प्रदूषण होता है।
ओजोन स्तर के घटने के कारण ध्रुवीय प्रदेशों पर जमा बर्फ पिघलने लगी है तथा मानव को अनेक प्रकार के चर्म रोगों का सामना करना पड़ रहा है। ये रेफ्रिजरेटर और एयरकंडिशनर में से उपयोग में होने वाले फ़्रियोन और क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC) गैस के कारण उत्पन्न हो रही समस्या है। आज हमारा वातावरण दूषित हो गया है। वाहनों तथा फैक्ट्रियों से निकलने वाले गैसों के कारण हवा (वायु) प्रदूषित होती है। मीलों से निकलने वाले कचरे को नदियों में छोड़ा जाता है, जिससे जल प्रदूषण होता है। लोंगों द्वारा कचरा फेंके जाने से भूमि (जमीन) प्रदूषण होता है।
== प्रदूषण के
प्रकार ==रेफ्रिजरेटर और एयरकंडिशनर में से उपयोग में होने वाले फ़्रियोन और
क्लोरोफ्लोरो कार्बन (CFC) गैस के कारण उत्पन्न हो रही समस्या है। आज
हमारा वातावरण दूषित हो गया है। वाहनों तथा फैक्ट्रियों से निकलने वाले गैसों के
कारण हवा (वायु) प्रदूषित होती है। मीलों से निकलने वाले कचरे को नदियों में छोड़ा
जाता है, जिससे जल प्रदूषण होता है। लोंगों द्वारा
कचरा फेंके जाने से भूमि (जमीन) प्रदूषण होता है।
प्रदूषण के कुछ मुख्य प्रकार निम्नवत हैं:
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वायु प्रदूषण: -वातावरण में रसायन तथा अन्य
सुक्ष्म कणों के मिश्रण को वायु प्रदुषण कहते हैं। सामान्यतः वायु प्रदूषण कार्बन मोनोआक्साइड, सल्फर डाइआक्साइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) और उद्योग और मोटर वाहनों से
निकलने वाले नाइट्रोजन आक्साइड जैसे प्रदूषको से होता है। धुआँसा वायु प्रदुषण का परिणाम है। धूल और मिट्टी के सूक्ष्म कण
सांस के साथ फेफड़ों में पहुंचकर कई बीमारियाँ पैदा कर सकते हैं।
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जल प्रदूषण:- जल में अनुपचारित घरेलू सीवेज के
निर्वहन और क्लोरीन जैसे रासायनिक
प्रदूषकों के मिलने से जल प्रदूषण फैलता है। जल प्रदूषण पौधों और पानी में रहने
वाले जीवों के लिए हानिकारक होता है।
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ध्वनि प्रदूषण:- अत्यधिक शोर
जिससे हमारी दिनचर्या बाधित हो और सुनने में अप्रिय लगे, ध्वनि प्रदूषण
कहलाता है।
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रेडियोधर्मी प्रदूषण:- परमाणु उर्जा
उत्पादन और परमाणु हथियारों के अनुसंधान, निर्माण और
तैनाती के दौरान उत्पन्न होता है!
चाहे वायु प्रदूषण हो, ध्वनि प्रदूषण हो, जल प्रदूषण हो या भूमि प्रदूषण, सबमें व्यवसाय की भागीदारी होती है। व्यवसाय निम्नलिखित तरीकों से पर्यावरण प्रदूषण बढ़ाता है :
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उत्पादन इकाईयों
से निकलने वाली गैसों और धुएं से,
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मशीनों, वाहनों आदि के
उपयोग से ध्वनि प्रदूषण के रूप में,
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औद्योगिक
इकाईयों को स्थापित करने के लिए वनों की कटाई से,
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औद्योगिकीकरण
तथा शहरीकरण के विकास से,
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नदियों तथा
नहरों में कचरे तथा हानिकारक पदार्थों के विसर्जन से,
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ठोस कचरे को
खुली हवा में फेंकने से,
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खनन तथा खदान
संबंधी गतिविधियों से,
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परिवहन के बढ़ते
हुए उपयोग से।
पर्यावरण
को नियंत्रित करने में व्यवसाय की तीन प्रकार की भूमिका हो सकती हैः निवारणात्मक, उपचारात्मक तथा
जागरूकता।
निवारणात्मक भूमिका
इसका अर्थ
है कि व्यावसायिक इकाईयाँ ऐसा कोई भी कदम न उठाए, जिससे पर्यावरण
को और अधिक हानि हो। इसके लिए आवश्यक है कि व्यवसाय सरकार द्वारा लागू किए गए
प्रदूषण नियंत्रण संबंधी सभी नियमों का पालन करे। मनुष्यों द्वारा किए जा रहे
पर्यावरण प्रदूषण के नियंत्रण के लिए व्यावसायिक इकाईयों को आगे आना चाहिए।
उपचारात्मक भूमिका
इसका अर्थ
है कि व्यावसायिक इकाइयाँ पर्यावरण को पहुँची हानि को संशोध्ति करने या सुधरने में
सहायता करें। साथ ही यदि प्रदूषण को नियंत्रित करना संभव न हो तो उसके निवारण के
लिए उपचारात्मक कदम उठा लेने चाहिए। उदाहरण के लिए वृक्षारोपण ; वनरोपण
कार्यक्रमद्ध से औद्योगिक इकाईयों के आसपास के वातावरण में वायु प्रदूषण को कम
किया जा सकता है। व्यवसाय की प्रकृति तथा क्षेत्र
जागरूकता संबंधी भूमिका
इसका अर्थ
है लोगों को (कर्मचारियों तथा जनता दोनों को) पर्यावरण प्रदूषण के कारण तथा
परिणामों के संबंध में जागरूक बनाएँ, ताकि वे
पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने की बजाय ऐच्छिक रूप से पर्यावरण की रक्षा कर सकें।
उदाहरण के लिए व्यवसाय जागरूकता कार्यक्रमों का आयोजन करे। आजकल कुछ व्यावसायिक
इकाईयां शहरों में पार्कों के विकास तथा रखरखाव की जिम्मेदारियाँ उठा रही हैं, जिससे पता चलता
है कि वे पर्यावरण के प्रति जागरूक हैं।
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